गुड़ी पड़वा क्यों कैसे मनाते हैं

गुड़ी पड़वा चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है चैत्र प्रतिपदा को अर्थात चैत्र महीने के पहले दिन ही हिन्दू नव वर्ष मनाया जाता है।

यह त्यौहार मुख्य रूप से महराष्ट्र में मनाया जाता है और नए साल का शुभारम्भ इसी दिन से किया जाता है।

गुड़ी पड़वा नाम का अर्थ जिसमे गुड़ी को पताका और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा तिथि होता है।

तो चलिए जानते है गुड़ी पड़वा कैसे मनाते है क्यों मनाते है इसका महत्त्व और इसे कब मनाया जाता है।

गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र मास के पहले दिन भगवान् ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना की थी इसलिए इस दिन भगवान ब्रम्हा जी की पूजा की जाती है।

इस त्यौहार के कई पौराणिक ग्रंथो में उल्लेख मिले है जिन में से दो कथाये सबसे ज्यादा प्रचलित है मैं आपको दोनों कथाएं बताऊगी।

पहली कथा रामायण से जुडी हुई है जो भगवान श्री राम और बाली के संबंधित है।

रामायण में जब रावण द्वारा माता का अपहरण कर लिया गया था तब भगवान राम सीता माता का पता लगाते हुए दक्षिण दिशा में जाते है जहाँ उनका मिलन हनुमान और सुग्रीव से होता है।

सुग्रीव ने भगवान राम को अपनी पूरी कहानी सुनाई और बताया की कैसे उनके बड़े भाई ने उन पर इतना अत्याचार किये है तब भगवान श्री राम ने कहा मैं दुष्ट बाली को उसके पापो की सजा जरूर दूंगा।

मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री राम ने अपने कहे अनुसार बाली को उसके पापो की सजा दी और सुग्रीव को बाली के अत्याचार और कुशासन से मुक्ति दिलाई थी इसी ख़ुशी में सुग्रीव के राज्य में इस दिन विजय पताका फहराई गई और यही प्रथा कई जगह आज भी प्रचलित है।

गुड़ी पड़वा त्यौहार की दूसरी कहानी एक कुमार से जुड़ी हुई है –

शालिवाहन नामक एक कुम्हार का लड़का था जो मिटटी के बर्तन बना कर अपना गुजारा करता था।

कुछ लोग उसे बहुत परेशान करते थे अकेले होने के कारण वह उन लोगो से युद्ध करने में सक्षम नहीं था उन शत्रुओ से शालिवाहन बहुत परेशान हो चुका था एक दिन उसके दिमाग में आया की क्यों न मिटटी की सेना बना ली जाए।

उसने अपने उस विचार के अनुसार एक दिन मिट्टी की सेना तैयार कर ली और सूखने रख दी।

जब मिट्टी की सेना सुख गई तो शालिवाहन ने उस सेना के ऊपर जल छिड़क कर प्राण डाल दिए।

युद्ध के समय शालिवाहन ने अपनी मिट्टी की सेना को युद्ध में खड़ा किया और इसी मिट्टी की सेना की मदद से शत्रु की सेना का नाश कर शत्रु को पराजित कर विजय प्राप्त की।

इसी विजय के प्रतीक स्वरूप में शालिवाहन शक भी आरम्भ हुआ और इसी विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी पड़वा का यह त्यौहार आज तक मनाया जाता है।

गुड़ी पड़वा कैसे बनाया जाता है

हिन्दू धर्म के लोग गुड़ी पड़वा के दिन पूजा करते है और घर के मुख्य दरवाजे पर आम के पत्तो का बंदनवार बांधते है।

घर के मुख्य दरवाजे पर बंदनवार बाँधने के पीछे ये मान्यता है की इसे दरवाजे पर बांधने गए बंदनवार सुख समृद्धि और खुशियाली ले कर आते है।

गुड़ी पड़वा त्यौहार की ख़ुशी में विभिन्न क्षेत्रो में विशेष प्रकार के व्यंजन भी तैयार किये जाते है, पूरन पोली नाम का मीठा व्यंजन इस पर्व की खासियत है, महाराष्ट्र में श्री खंड और आंध्रा प्रदेश में पच्चड़ी को प्रसाद के रूप में बाटने का प्रचलन गुड़ी पड़वा पर्व पर है।

बेहतर स्वास्थ की कामना के नीम की कोपलों को गुड़ के साथ खाने की परंपरा भी है। मान्यता है की इससे सेहत ही नहीं बल्कि संबंधो की कड़वाहट में भी मिठास में बदल जाती है।

गुड़ी पड़वा मनाने का तरीका

  • गुड़ी पड़वा के दिन पहले सभी अपने घरो की साफ सफाई करते है।
  • गाय के गोबर से घरो की लीपा पोती करते है और घरो को शुद्ध करते है।
  • गुड़ी पड़वा के दिन अरुणोदय काल में ही अभ्यंग स्नान अवश्य कर ले।
  • इस दिन सभी प्रातः स्नान करके गुड़ी को सजाते है।
  • सूर्योदय के बाद गुड़ी की पूजा कर लेनी चाहिए।
  • पूजा के पहले रंग बिरंग रंगो से रंगोली बनानी चाहिए, और फूलो से घरो को सजाना चाहिए।
  • महाराष्ट्र में इस दिन सभी औरते नौवारी साड़ी पहनती है।
  • मराठी लोग इस दिन खास तोर पर लाल रंग की पगड़ी के साथ कुरता पजामा या धोती कुरता पहनते है।
  • पूजा के लिए मीठे में पूरन पोली, श्री खंड और खीर बनाई जाती है।
  • महाराष्ट्र के लोग इस दिन शाम के समय लेजिम नामक पारंपरिक नृत्य भी करते है।

गुड़ी पड़वा का महत्व

  • गुड़ी को धर्म-ध्वज भी कहते हैं अतः इसके हर हिस्से का अपना विशिष्ट अर्थ है–उलटा पात्र सिर को दर्शाता है जबकि दण्ड मेरु-दण्ड का प्रतिनिधित्व करता है।
  • किसान रबी की फसल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते है अच्छी फसल की कामना के लिए गुड़ी पड़वा के दिन खेतो को भी जाता है।
  • मान्यता है की इस दिन ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना की थी इसलिए गुड़ी को ब्रम्हघ्वज और इन्द्रध्वज के नाम से भी जाना जाता है।
  • शालिवाहन द्वारा इस दिन शको को पराजित करने की ख़ुशी में लोगो ने अपने घरो पर गुड़ी को लटका कर गुड़ी पड़वा त्यौहार को मनाया था।
  • इसी दिन भगवान श्री राम ने इसी दिन बाली का वध करके सुग्रीव को उसका राज्य किष्किंधा वापस करवाया।
  • कुछ लोग छत्रपति शिवाजी की जीत को याद करके गुड़ी को लगाते है और यह पर्व धूमधाम से मानते है।

गुड़ी पड़वा कब मनाया जाता है

गुड़ी पड़वा का त्यौहार चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदा अर्थात चैत्र मास के प्रथम दिन मनाया जाता है।

इस वर्ष 2022 में गुड़ी पड़वा 2 अप्रैल दिन शनिवार को मनाया जायेगा।

गुड़ी पड़वा के दिन से हिन्दू नव वर्ष संवत्सरारम्भ माना जाता है, गोवा महाराष्ट्र के अन्य देशी में दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इसे विशेष धूमधाम के साथ मनाया जाता है वही उत्तर भारत में इस दिन से नवरात्र का आरम्भ होता है और 9 दिन तक माँ दुर्गा की उपासना की जाती है और पर्व को मनाया जाता है।

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गुड़ी पड़वा बुराई को पराजित कर अच्छाई की पताका का प्रतीक है।

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