सुहागनें वट सावित्री का व्रत क्यों करती हैं

वट सावित्री का यह व्रत जीवनसाथी स्वास्थ और लम्बे जीवन की कमाने के लिए किया जाता है यह भारतीय सांस्कृतिक में ऐतिहासिक पर्व के रूप में मनाया जाता है।

हिन्दू धर्म की पतिव्रता पत्नी पति की लम्बी उम्र और स्वस्थ जीवन के लिए अनेक व्रत करती है, उन्ही व्रतों में से एक है वट सावित्री का व्रत जो पौराणिक कथा सावित्री और सत्यवान की सच्ची प्रेम कहानी पर आधारित है।

चलिए जानते है वट सावित्री का व्रत क्यों किया जाता है और कैसे किया जाता है।

वट सावित्री

धार्मिक पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से बचाये थे साथ ही उसने पुत्र प्राप्ति और अपने सास ससुर का राज काज वापस मिलने का वरदान भी प्राप्त किया था उसी समय से यह व्रत प्रत्येक स्त्री अपने पति की लम्बी आयु और संतान प्राप्ति के लिए करती है।

वट सावित्री का व्रत रखने से ऐसा माना जाता है की घर में सुख सम्पदा भी प्राप्त होती है।

वट सावित्री का व्रत भारतीय संस्कृति में आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चूका है

वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है

वट सावित्री का व्रत प्रतिवर्ष दो बार आता है, पहला ज्येष्ठ मास की अमावश्या को जिसे उत्तर भारत की सुहागने व्रत रखती है और दूसरा ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को इस वट सावित्री के दिन दक्षिण भारत की सुहागने वट सावित्री का व्रत रखती है और बड़ी धूमधाम से यह त्यौहार मनाती है।

इस वर्ष यह त्यौहार 2023 ज्येष्ठ कृष्ण अमावश्या 30 मई दिन सोमवार को मनाया जाएगा।

वट सावित्री पूजा

वट सावित्री जैसे शुभ व्रत को रखने के लिए भी महिलाये सुबह जल्दी उठ कर स्नान और अन्य क्रियाएँ करके पूजा के स्थान पर दीप जला कर व्रत का संकल्प लेती है।

व्रत का संकल्प करने के बाद सभी सामग्री को टोकरी में रख कर सावित्री सत्यवान की मूर्ती ले कर वट वृक्ष जा कर स्थापना करती है और वृक्ष को जल अर्पित करके पूजा की समस्त सामग्री चढाती है और सबसे बाद में लाल कलावा ले कर वृक्ष से बांध कर सात परिक्रमा लगाती है।

पूजा करने के बाद व्रत की कथा सुनती है और आरती करके हाथ जोड़ कर प्रणाम करती है।

पूजा विधि –

  • वट सावित्री का व्रत करने के लिए महिलाए सुबह जल्दी उठ जाती है और पूरे घर की साफ सफाई करती है।
  • साफ सफाई करने के बाद नहाती है और पूरे घर को शुध्द गंगाजल का छिड़कर कर घर को पवित्र करती है।
  • पूजा के साथ पर रंगोली बनाती है और वही पर पूजा की पूरी सामग्री रख लेती है।
  • सामग्री रखने के बाद एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा कर शिव पार्वती या लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा को रख कर उनकी स्थापना करती है।
  • पूजा के स्थान पर माता तुलसी का वृक्ष रखती है।
  • सबसे पहले माता गौरी और गणेश जी की पूजा की जाती है उसके बाद वृक्ष को जल अर्पित करके विधि विधान से वृक्ष की पूजा की जाती है।
  • एक बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरके ब्रह्मा की मूर्ती की स्थापना की जाती है।
  • ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सवित्री की मूर्ती की स्थापना की जाती है।
  • इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सप्त धान्य में सत्यवान की मूर्ती की स्थापना की जाती है।
  • दूसरी टोकरी में सावित्री की मूर्ती की स्थापना करे।
  • दोनों टोकरी को वट वृक्ष के नीचे रहा जाता है।
  • ब्रम्हा और सावित्री की पूजा की जाती है।
  • ब्रम्हा और सावित्री की पूजा करने के बाद सावित्री और सत्यवान की पूजा अर्चना करते हुए वट वृक्ष को जल अर्पित किया जाता है।
  • वट सावित्री की पूजा में जल, फूल, रोली, भीगे हुए चने, कच्चा सूत, धुप और अगरबत्ती का प्रयोग किया जाता है।
  • वट वृक्ष को जल चढ़ाने के तने के चारो और कच्चा धागा बांधते हुए तीन परिक्रमा की जाती है।
  • कच्चा धागा बांधने के बाद बरगद के वृक्ष के पत्ते के गहने बना के पहने जाते है उसके बाद सावित्री और सत्यवान की कथा प्रारम्भ की जाती है।
  • कथा समाप्ति के बाद वट वृक्ष, ब्रम्हा और सावित्री का आशीर्वाद ले कर भीगे हुए चने और नगद रूपये हाथ में लेकर अपनी सास के पैर छू कर आशीर्वाद लिया जाता है।
  • पूजा सम्पन्न होने के बाद ब्रामणो को वस्त्र और फल बांस के पात्र में रख कर दान करे।
  • निर्धन स्त्रियों को सुहागन की सामग्री दान करे और यदि वह भी व्रत करना चाहती है तो उन्हें पूजा करने के लिए जितना हो सके उतनी सामग्री देने की कोशिश करे।

वट सावित्री पर्व की शुरुआत

पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री ने वट वृक्ष ( बरगद ) के नीचे बैठ कर अपने पति को जीवित किया था इसलिए इस व्रत को वट सावित्री के नाम से जाना जाता है और इसकी पूजा भी वट वृक्ष के नीचे की जाती है।

इस व्रत में वट वृक्ष का सबसे अधिक महत्व है इसलिए सुहागने इस व्रत की पूजा वट वृक्ष के नीचे करती है और अपने पति की लम्बी आयु के साथ स्वस्थ जीवन की मंगल कामना करती है।

वट सावित्री की कथा

भद्र देश एक राजा थे जिनका नाम अश्वपति था, राजा अश्वपति की कोई भी संतान नहीं थी, उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ लाखो आहुतिया दी यह क्रम अठारह वर्ष तक चलता रहा।

इसके बाद सावित्री देवी ने प्रसन्न हो कर राजा अश्वपति को वरदान दिया की राजन तुम्हारे घर में एक तेजस्वी कन्या का जन्म होगा।

माता सावित्री देवी के आशीर्वाद के कारण उनके घर में एक कन्या का जन्म जिसका नाम भी सावित्री ही रखा गया।

राजा अश्व्पति की कन्या सावित्री बड़ी हो कर बेहद रूपवान हुई, उम्र बढते जाने और योग्य वर न मिलने के कारण अश्वपति बेहद दुखी और चिंता में रहने लगे कुछ समय बाद उन्होंने अपनी पुत्री को स्वयं वर तलाशने भेज दिया।

सावित्री तपोवन में भटकने लगी वहा राजा साल्व के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योकि उनका राज्य किसी ने उनसे छीन लिया था, राजा द्युमत्सेन का पुत्र था जिसका नाम सत्यवान था सावित्री ने सत्यवान को देखकर अपने पति के रूप में वर्णन किया।

ऋषिराज  नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और बोले हे राजन यह क्या कर रहे है आप? सत्यवान धर्मात्मा है गुणवान है और बलवान भी है पर उसकी आयु बहुत कम है एक वर्ष के बाद ही इसकी मृत्यु हो जायेगी।

ऋषिराज नारद की बात सुन कर राजा चिंता में पड़ जाते है। सावित्री ने उनकी चिंता का कारण पुछा, तो राजा ने कहा, जिस राजकुमार को तुमने अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु है, तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी चुनना होगा।

इस बात पर सावित्री ने कहा पिता जी, आर्य कन्याए अपने पति का एक ही बार वरण करती है, राजा एक ही बार आज्ञा देते है और पंडित एक ही बार प्रतिज्ञा करते है और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है।

सावित्री हट करने लगी और कहने लगी मैं सत्यवान से ही विवाह करुँगी, राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से करा दिया।

विवाह के बाद सावित्री अपने सास ससुर की सेवा करने लगी समय बीतता चला गया। नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान की मृत्यु की दिन के बारे में पहले ही बता दिया था।

वह दिन जैसे जैसे करीब आने लगे सावित्री अधीर होने लगी, सावित्री ने तीन दिन पहले से ही व्रत रखना शुरू कर दिए नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरो का पूजन किया।

सत्यवान प्रत्येक दिन की तरह इस दिन भी लकड़ी काटने चला गया साथ में सावित्री भी गई थी।

जगंल पहुंचने के बाद सत्यवान ने लकड़ी काटना शुरू कर दिया लेकिन तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा जिसके कारण वह पेड़ से नीचे उतर आया, सावित्री अपने भविष्य से परिचित होने के कारण समझ गई।

सत्यवान के सिर को अपनी गोद में रख कर सत्यवान के सिर को सहलाने लगी तभी वहा यमराज आते दिखे, यमराज सत्यवान को अपने साथ ले जाने लगे। सावित्री ने देखा की वह उसके पति को दक्षिण दिशा में ले जा रहे है, सावित्री भी उनके पीछे पीछे चलने लगी।

यमराज ने सावित्री को संमझने की बहुत कोशिश की यही विधि का विधान है, लेकिन सावित्री ने यमराज की एक न सुनी।

सावित्री की निष्ठां पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा की हे देवी तुम धन्य हो तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।

सावित्री ने कहा मेरे सास ससुर वनवासी और अंधे है उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करे यमराज ने कहा ऐसा ही होगा जाओ अब लोट जाओ।

लेकिन सावित्री पीछे पीछे चलती रही यहराज ने कह देवी तुम वापस लोट जाओ सावित्री ने कहा भगवान मुझे मेरे पति के पीछे पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है यह सुन कर यमराज ने उसे एक और वर मांगने को कहा।

सावित्री ने कहा मेरे सास ससुर का राज्य छीन गया है उसे पुनः वापस दिला दे, यमराज ने उन्हें यह वरदान भी दे दिया और सावित्री को वापस लोट जाने को कहा लेकिन सावित्री पीछे पीछे चलती रही।

यमराज ने सावित्री को अब तीसरा वरदान मांगने को कहा और कहा की देवी इस वरदान के बाद आपको पृथ्वीलोक वापस लौटना पड़ेगा।

इस बार सावित्री ने 100 संतान और सौभाग्य का वरदान मांगा यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया।

सावित्री ने यमराज से कहा हे प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूँ और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुन कर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री वापस उसी वट वृक्ष के नीचे आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।

सत्यवान जीवित हो गया और दोनों ख़ुशी ख़ुशी अपने राज्य की और चले जाते है। दोनों जब राज्य पहुंचते है और देखते है की उनके माता पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है इस प्रकार सावित्री और सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।

वट सावित्री के लिए भोग में क्या बनाये

वट सावित्री का व्रत निर्जल बिना कुछ खाये पिए किया जाता है जैसे हरितालिका तीज और करवा चौथ का व्रत रखा जाता है बिल्कुल वैसे ही।

इस व्रत की पूजा के लिए गुड़ के गुलगुले या पूए और भीगे हुए चने का भोग लगाया जाता है, सुहागने पूजा करते समय पूए और चने को अपने पल्लू में रख कर परिक्रम करती है और बाद में इसी प्रसाद को भगवान को अर्पण करके इसी से अपना व्रत तोड़ती है।

वट सावित्री की पूजा के बाद आम का मुरब्बा, खरबूजा और गुलगुले प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

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उम्मीद है सावित्री और सत्यवान की सच्ची प्रेम कहानी आपको जरूर पसंद आएगी होगी।

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