कब क्या कितना और कैसे खायें स्वस्थ रहने के लिए

आयुर्वेद के अनुसार पहले खाया हुआ भोजन पच जाने पर ही दुबारा भोजन करना चाहिए । यह भोजन ताजा होना चाहिए । खाना ना तो बहुत जल्दी जल्दी खाना चाहिए और ना ही बहुत धीरे धीरे ।

भोजन की समुचित मात्रा खानी चाहिए । समुचित मात्रा मे किया गया भोजन ही हमे बल , वर्ण , सुख तथा आयु प्रदान करता है ।

भोजन करने से पहले शरीर के समस्त आवेग शांत होने चाहिए । मन प्रसन्न और निर्मल होना चाहिए ।

भोजन देर रात को नहीं करना चाहिए । रात के समय पाचन बहुत धीमी गति से होता है जो कई प्रकार की समस्या पैदा कर सकता है । गर्मी के मौसम मे रात 8 बजे से पहले , सर्दी मे 7 बजे से पहले और वर्षा ऋतु मे सूर्योदय से पहले भोजन कर लेना ठीक होता है ।

जमीन पर पालथी लगाकर , अपनों के साथ बैठकर , प्रसन्न मन से संतुलित , पोषक और स्वादिष्ट भोजन , अपनी पाचक क्षमता के अनुसार , उचित मात्रा मे करना स्वास्थ्यकर होता है ।

भोजन मे यथा संभव छह रस – मधुर , अमल , लवण , कटु , तिक्त व कसाय का होना ठीक रहता है ।

आयुर्वेद के अनुसार कुछ चीजें लघु यानि सुपाच्य होती है और कुछ गुरु यानि गरिष्ठ । गरिष्ठ भोजन कम मात्रा मे ही खाने चाहिए जैसे हलवा , पूड़ी , रबड़ी , उड़द , तिल आदि । सुपाच्य यानि लघु चीजें भी अत्यधिक मात्रा मे नहीं खानी चाहिए ।

सुपाच्य खाद्य पदार्थों मे वायु व अग्नि गुण प्रधान होता है । ये पाचक अग्नि को बढ़ाने वाले होते हैं । इन्हे तृप्ति पूर्वक खा लेने पर भी अधिक दोष उत्पन्न नहीं होते ।

लेकिन गुरु या गरिष्ठ पदार्थों मे पृथ्वी तथा सोम गुण की अधिकता होने के कारण ये अग्नि को उदीप्त नहीं कर पाते । भरपेट इन्हे खाने से पाचन मुश्किल होता है ।

गरिष्ठ भोजन तृप्ति पूर्वक तभी खाना चाहिए जब आप कठोर व्यायाम करते हैं । क्योंकि कठोर व्यायाम से अग्नि बल बढ़ता है । गरिष्ठ भोजन अपने अग्नि बल की हैसियत का ख्याल रख कर ही खाना चाहिए ।